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Article 370 आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, बड़ा सवाल क्या संसद राष्ट्रपति शासन के दौरान जम्मू-कश्मीर को बांट सकती है

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आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई करते हुए पूछा कि 2018-19 में राष्ट्रपति शासन लागू रहने के दौरान जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 को क्या संसद पारित कर सकती है जिसने इस राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया। इसके साथ ही इसके जवाब में जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेंस ने अपनी दलीलें दीं। यह जिरह गुरुवार को भी जारी रहेगी। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेंस की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन से यह प्रश्न किया। इस बीच धवन के मुवक्किल ने ना सिर्फ अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले को चुनौती दी है बल्कि राज्य में 19 दिसंबर, 2018 को राष्ट्रपति शासन लगाने और उसे 3 जुलाई, 2019 को छह महीने के लिए बढ़ाने के फैसले को भी चुनौती दी है। प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने धवन से पूछा कि क्या संसद अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) लागू रहने के दौरान एक कानून (जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019) को लागू कर सकती है? इसके जवाब में धवन ने कहा कि संसद संविधान के अनुच्छेद तीन और चार की सभी सीमाओं में रहते हुए कानून पारित कर सकती है।
अनुच्छेद 3 के मुताबिक संसद किन्हीं दो राज्यों को विभाजित करने, दो या उससे अधिक राज्यों को जोड़ने या उसके किसी क्षेत्र को किसी और राज्य से संबद्ध करने जैसे तमाम फैसले ले सकती है। इसके तहत वह किसी राज्य की सीमाएं बढ़ाने, कम करने या फिर उस राज्य का नाम बदलने जैसे फैसले भी ले सकती है। इसके साथ् ही वहीं अनुच्छेद चार में पहली अनुसूची में बदलाव की अनुमति होती है। जैसे राज्यों के नाम बदले जा सकते हैं। चौथी अनुसूची से प्रत्येक राज्य के लिए राज्यसभा की सीटें अलाट की जा सकती हैं। धवन ने कहा कि अनुच्छेद 3 व 4 के तहत यह अनिवार्य शर्त है कि मौजूदा राज्यों के नाम या सीमाओं को बदलने के संबंध में राज्य की विस को मामला भेजते हैं। छठे दिन की बहस के दौरान धवन ने कहा कि जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था तो वहां राज्य का पुनर्गठन नहीं हो सकता था और ना ही अनुच्छेद 370 हटाया जा सकता था। उन्होंने कहा कि विस का विकल्प संसद नहीं हो सकती और ना ही राज्यपाल का विकल्प राष्ट्रपति हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र ने संविधान संशोधन कर अनुच्छेद 3 व 4 के तहत जम्मू और कश्मीर का पुनर्गठन कर दिया है। कभी भी वैकल्पिक व्यवस्था के लिए अनिवार्य व्यवस्था को खत्म नहीं किया जाता है। अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर अक्सर जम्मू कश्मीर के मुस्लिम बहुसंख्यक होने का हवाला देने वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती को भी बुधवार को भगवान श्रीराम की याद आ गई। सर्वोच्च न्यायालय में अनुच्छेद 370 की सुनवाई के संदर्भ में उन्होंने कहा,‘मैं इस देश के उन बहुसंख्यक लोगों के बारे में बात कर रही हूं जो श्री रामचंद्र और उनके आदर्श वचन रघुकल रीत सदा चली आई, प्राण जाई पर वचन न जाई में यकीन रखते हैं। इसलिए मुझे लगता है आज वचन का मामला सर्वोच्च अदालत में लड़ा जा रहा है।’ उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर के लोगों को अभी भी सर्वोच्च न्यायालय पर भरोसा है। नई दिल्ली में सर्वोच्च न्यायालय के बाहर पत्रकारों से बातचीत में महबूबा ने कहा कि वर्ष 1947 में मुस्लिम बहुसंख्यक जम्मू कश्मीर ने जिस भारत के साथ हाथ मिलाया था आज उसी भारत के विचार की अदालत में सुनवाई हो रही है।

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